Friday, June 6, 2008

अलविदा इंदौर

बहुत खाया , बहुत हँसे , बहुत सोये , अब ये सब छूट जाएगा । आखरी दोपहर इंदौर मे बीत रही है , अब जाने कब आना हो . दिल्ली मे यही सब तो नही है . सब भाग रहे है पेर कोई कही नही पहुच रहा कुछ सुना याद आ रहा है ..
मुश्किल है इस शहर से जाना
जाने कब हो वापस आना
भूल ना जाना , याद ना आना
ये दिल है कितना दीवाना
चार दिनों मे इसने कितने रिश्ते नाते जोड़े l
कोई चिंता नही , सबको अपनी जड़ो मे ही लोटना है .

5 comments:

अमिताभ said...

very nice blog !! likhte rahe !!
apani jado ko har koi yaad karta hai .aapka andaz behad bhaya.
with compliments
amitabh

सागर नाहर said...

इंदौर की गमंडी की लस्सी को आप बहुत मिस करेंगी ना श्‍वेता,..?:)
ऐसा ही होता है जब हमें बहुत लम्बे समय तक एक स्थान पर रहने के बाद उस स्थान को छॊड़ना पड़ता है तब बहुत तकलीफ होती है..
हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, आप हिन्दी में बढ़िया लिखें और खूब लिखें यही उम्मीद है।
एक अनुरोध है कृपया यह वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें,तो बढ़िया होगा यह टिप्पणी करते समय बड़ा परेशान करता है।

॥दस्तक॥
तकनीकी दस्तक
गीतों की महफिल

सागर नाहर said...

क्षमा कीजिये .. उपर गमंडी की बजाय घमंडी पढ़ें।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सही कहा आपने, हम दुनिया जहान में कहीं भी घूम आएं, पर लौटना तो अपनी जडों में ही होता ह।
और हाँ सागर जी की तरह एक निवेदन- कृपया कमेंट बॉक्स से वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें, इससे इरीटेशन होती है।

आशीष कुमार 'अंशु' said...

स्वागत है