Thursday, May 29, 2008

पटरी पे जिंदगी

काश पहले पता होता , की अपनी बात मनवाने के लिए हमारे देश मे रेलवे ट्रैक जाम करना पड़ता है . तो शायद हम बचपन से लेकर बुदापे तक रेलवे ट्रैक के आस पास ही पाए जाते . बचपन मे नुक्कड़ की गोली चोकलेट की दुकान के सामने ज़मीं पे ही पटक पटक कर रोने के बजाये शायद मोहल्ले की टोली के साथ छोटी लेन जाम करते । फ़िर तो पुरा मोहल्ला आकर ससम्मान हमे नुक्कड़ की उस दुकान पे ले जाकर दुकानदार से कहता ” आगे से किसी गोली के लिए मन मत करना , वेरना हम तुझे इस रेल ट्रैक पे पटक देंगे
होमवर्क ना करने पर जब जब हम मुर्गा बने तो इस ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करना ही नही आता था , कितनी मार खाई , कितने कान मरोड़े गए पर हम ना सुधरे . जेबखर्च से लेकर उस उन खिलोनो तक जिन्हें हम पहले दिन ही तोड़ देते , हर चीज़ के लिए खामखा ही मुह फुलाया ,।
वो तो भला हो इस “बेन्सला ” का इसने राजस्थान मे इतनी उठापटक कर साबित दिया की बचपन से लेकर बुदापे तक और चोकलेट से लेकर आरक्षण तक हर चीज़ पाने का तोड़ आन्दोलन मे ही है । वो सारे बच्चे जो घर से तो छुट्टी मनाने निकले थे पर अब रेलवे स्टेशन पर 3 दिन से अपने लगेज के साथ बेठे , लगेज जेसे ही हो गए है सारी जिंदगी अपनी समस्याओ का हाल रेलवे ट्रैक पे ही ढून्देगे । कुछ रेल रोकेंगे तो कुछ रेल के नीचे आ जायेंगे ।